क्या आप भी जानते है टाइटैनिक के ये रहस्य ?

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दुनिया की सबसे दुखद दुर्घटना या घटना जिसे सुनकर सभी को सदमा साल लग गया था। एक ऐसा जहाज जो की सदी का सबसे बड़ा और कभी ना डूबने वाला जहाज माना गया था। जिसका नाम था आरएमएस टाइटेनिक।


बात करते हैं यह कैसे और कहां से स्टार्ट हुआ। बात 19वीं शताब्दी के जब बब्रिटिश और जर्मनी के बीच बड़े बड़े जहाज बनाने की होड़ लगी हुई थी। ब्रिटेन सरकार ने कैसा जहाज बनाने का निर्णय लिया दोस्त सदी का सबसे बड़ा जहाज हो और उसकी सजावट ऐसी हो जैसे कोई महल खड़ा किया हो , उन्होंने जहाज बनाने कॉन्ट्रैक्ट व्हाइट स्टार कंपनी को दिया जिसमें उन्होंने करोड़ों डॉलर का लोन उस कंपनी को दिया था। 31 मार्च 1909 को जहाज बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई जिससे 15000 इंजीनियर लगे थे
3 साल की कड़ी मेहनत के बाद कंपनी ने ऐसा जहाज बनाया जिसको देखकर लगता है कि कोई शहर पानी में तैर रहा हो।
ईस जहाज को 16 अलग-अलग अपार्टमेंट में बांटा गया था।
2 अप्रैल 1912 को टाइटेनिक बनकर तैयार हो चुका था।
जब इस जहाज की भव्यता चर्चा जब दूसरे देशों में की गई तो लोग इस पर पहली यात्रा करने के लिए लोग रोमांचित हो उठे ।
10 अप्रैल 1912 को टाइटेनिक 920 यात्रियों को लेकर सफर करने के लिए इंग्लैंड के साउथेंप्टन से न्यूयॉर्क की ओर निकल पड़ा।


ऐसा कहा जाता है कि जब टाइटैनिक ने अपनी पहली यात्रा शुरू की थी तो एक लाख से ज्यादा लोगों ने इसे देखने के लिए बंदरगाह पर आए थे।
टाइटेनिक आयरलैंड से न्यूयॉर्क की ओर निकला तो उन्होंने समुंदर में आइसबर्ग होने की पहली खबर मिली थी। जहाज 47 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से आगे बढ़ रहा था।
जहाज के कैप्टन एडवर्ड जॉन स्मिथ ने रास्ते में आ रही रुकावट की खबर पर ध्यान नहीं दिया।
और जहाज की स्पीड को कम नहीं कि जो कि अपने फुल रफ्तार के साथ समुंदर को चीरता हुआ आगे बढ़ रहा था।
रात होते-होते कैप्टन को 6 संदेश अन्य जहाजों की तरफ से मिल चुके थे कि आगे खतरा है।
लेकिन कैप्टन जहाज की स्पीड कम नहीं करना चाहते थे और ना ही इन खबरों को गंभीरता से लेना चाहते थे।
क्योंकि कैप्टन की वह आखरी यात्रा थी उसके बाद वह रिटायर होना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने एक नया रिकॉर्ड बनाना चाहते थे वह चाहते थे कि उन्होंने दुनिया का सबसे बड़ा जहाज सबसे तेज रफ्तार से चलाया था।
14 अप्रैल की अंधेरी रात में कैप्टन ने जहाज के 2 क्रू मेंबर्स फ्रेडरिक फ्री ओर रेगलैन ली को जहाज की निगरानी के लिए ब्रिज के सबसे ऊपरी हिस्से पर तेनात कर दिया।
ताकि वे किसी भी खतरे को देखकर कैप्टन को तुरंत सचेत कर सके । उस रात बिल्कुल समुंदर बिल्कुल शांत था और रात में चांद नहीं था अंधेरी रात थी।
ठीक 11:39 पर निगरानी पर तैनात 1 क्रू मेंबर ने जहाज के बिल्कुल सामने एक काला पहाड़ देखा , इसे देखते हुए समझ गए कि यह आइस बर्ग की एक चट्टान है।
उन्होंने 1 मिनट भी खराब नहीं की और तुरंत खतरे का घंटा बजा दिया और फोन पर इस बात की जानकारी दी।
जय सुनते ही जहाज के सभी ऑफिसर उसको दूसरी तरफ घुमाने के लिए अपनी पूरी कोशिश करने लगे लेकिन बदकिस्मती से 11:40 पर जहाज का एक निचला हिस्सा उस स्थान से टकरा गया ।
टक्कर इतनी भयानक थी कि यात्रियों को नींद से उठने पर मजबूर कर दिया। यात्रियों को ईस खतरे का एहसास तब हुआ जब टाइटैनिक के जगह पर पूरी तरह से रुक गया था और उसके इंजन बंद हो गए थे
जैसे यह खबर पूरी जहाज में फैली कि जहाज किसी चट्टान से टकरा गया है जहाज पर भगदड़ मच गई थी।
टककर जहाज की दाई तरफ हुई थी , जिससे जहाज को जोड़ने वाली प्लेटों में दरारें पैदा हो गई और तेजी से पानी जहाज के अंदर घुसने लगा।
जहाज में मौजूद जहाज के डिजाइन में कैप्टन को बताया कि थर्ड क्लास में पानी तेजी से घुस रहा है और कुछ ही समय बाद पानी पूरी तरह डेक के ऊपर से फैलता हुआ सभी अपार्टमेंट में घुस जाएगा
उसके बाद लाइफबोट्स को नीचे उतारने का फैसला किया गया टाइटैनिक पर उसमें सिर्फ 20 लाइव वोट ही मौजूद थे इसमें 65 लोगों की कैपेसिटी थी।
लेकिन अफरा तफरी के माहौल में एक लाइफबॉट में सिर्फ 30 से 35 लोग ही सवार हो चुके थे।
बाद में इस बात पर सवाल भी उठाए गए थे क्योंकि कैप्टन को पता था कि जहाज पर कितने लोग मौजूद है और उन्होंने कुछ बोट को खाली ही जाने दिया। जिससे उस रात जहाज पर ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।
जहाज पर मौजूद एक गायकों के दल ने वहां पर संगीत सुनना स्टार्ट कर दिया उन्होंने अपनी जान की फिक्र नहीं की और लोगों का मन बहलाने के लिए ऐसा किया। जहाज पर चारों तरफ खोफ ओर डर का मंजर था।
जहाज में पानी के दबाव बढ़ने से लगभग 2:20 पर टाइटैनिक बीच में से टूट कर दो विश्व में अलग हो गया था।
मात्र 2 घंटे 40 मिनट में कभी न डूबने वाला जहाज अटलांटिक महासागर की गोद में समा गया ।
उस रात लगभग 1500 से 1700 लोगों की जान गई थी और उनमें अधिकतर लोगों की जान पानी में डूबने से नहीं बल्कि 2 डिग्री के तापमान में ठंड में जमकर मर गए थे।
टाइटैनिक के डूबने के लगभग 2 घंटे बाद 710 लोगों को बचा लिया गया था।
इस घटना का मुख्य जिम्मेवार जहाज के कैप्टन को माना जाता है।

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